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मोदी विरोध की निति अल्पसंख्यकों को न्याय दिलाने के उद्देश से उचित नहीं कही जा सकती. अगर यह मान भी लिया जाय की मोदी के नीतिगत फैसले ने जाने अनजाने ही सही गुजरात दंगो के दौरान एक छोटी चिंगारी से आग का विकराल रूप लिया.पर आज दंगो के इतने वर्षों बाद ये सब उनके द्वारा किये गए सुधार और विकाश के कार्यों के आगे कोई मायने नहीं रखते.संभवतः उनको उनके उस भूल के लिया काफी पर्तारना मिल चुकी है और आप उस व्यक्ति को बिना जाने बिना परखे कैसे परित्यक्त कर सकते हैं जिसे एक खस्ताहाल देश एक आशा के रूप मैं देख रहा है.ये हमारा कर्त्तव्य बनता है की हम विद्वेष त्याग कर तथा बीती बातो को भुला कर देश की खातिर उन्हें एक मौका दे.

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